138 गेंद में 175 रन की पारी में मात्र 22 गेंदों में बाउंड्री के मदद से लगे थे 100 रन, जिसमें 16 चौके और छह छक्के आए थे। उनके बल्ले से यह पारी ऐसी थी जैसे मानो सैलाब आ गया हो या फिर ऐसा मानो की सही से नहीं नहाने देने का बदला लिया गया हो। बात 1983 वर्ल्ड कप के चैंपियन खिलाड़ी कपिल देव की है, जब वे जिंबाब्वे के खिलाफ छठे नंबर पर बल्लेबाजी करने आए और 138 गेंद में 175 रन की यादगार पारी खेली, जिसमें उनके बल्ले से 16 चौके और छह छक्के निकले।
वनडे क्रिकेट इतिहास के सबसे महान पारियों में से एक यह पारी में 18 जून 1983 को खेली गई थी, जब भारतीय टीम गहरी संकट में थी। महज 17 रन के स्कोर पर भारत के आला दर्जे के खिलाड़ी पवेलियन वापस लौट चुके थे। जिससे आप ही भारतीय टीम सस्ते में ही निपट गई तब भारत के कप्तान कपिल देव को टीम की स्थिति को संभालने के लिए क्रीज पर आना पड़ा। आपको बता दें कि जब वह नहाने के लिए अपने बाथरूम में थे, तभी उन्हें जल्दी से बाहर आने के लिए कहा गया, तब वह सही से अपने साबुन भी साफ नहीं किए थे लेकिन मैदान पर उतरने के बाद विरोधी टीम के जीत के सपने को जरूर साफ कर दिया। उन्होंने महज 138 गेंद में 175 रन की ताबड़तोड़ पारी खेली जिसमें उनके बल्ले से 16 चौके और छह छक्के निकले। लेकिन सबसे दुखद घटना यह थी कि इस मैच का रिकॉर्डिंग नहीं मिला उस दिन बीसीसीआई के कर्मचारियों की हड़ताल थी, जिसकी वजह से ना ही इस मैच का प्रसारण हुआ और ना ही इसका कोई फुटेज मिला।
टनब्रिज वेल्स के नेविल मैदान में हुए इस मैच में कपिल देव ने टॉस जीता और पहले बल्लेबाजी करने का निर्णय लिया। टॉस जीतने के बाद वह सीधे नहाने चले गए भारत की तरफ से सुनील गावस्कर और क्रिस श्रीकांत बैटिंग के लिए उतरे लेकिन दुर्भाग्यवश मैच की दूसरी ही गेंद पर सुनील गावस्कर आउट हो गए और श्रीकांत खाता भी नहीं खोल पाए तो मोहिंदर अमरनाथ 5 रन के निजी स्कोर पर चलते बने। कुछ ही देर में संदीप पाटिल भी 1 रन बनाकर चलते बने, जिससे भारत का स्कोर 9 रन पर 4 विकेट हो गया था। एकदम से टॉप ऑर्डर ढहने के बाद कपिल देव को जल्दी से बाथरूम से बाहर निकलने और बल्लेबाजी करने के लिए कहा गया। कपिल देव को अचानक से सुनकर यकीन ही नहीं हुआ कि इतना जल्दी विकेट कैसे गिर गया वे जल्दी जल्दी में तैयार होकर बैटिंग के लिए चले गए। साथी खिलाड़ियों का कहना है कि वह सही से साबुन भी नहीं निकाल पाए थे तब तक भारत का स्कोर 17 रन पर 5 विकेट हो गया। यशपाल शर्मा भी 9 रन बनाकर पवेलियन वापस लौट गए इस तरह टॉप ऑर्डर में कोई भी प्लेयर दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू सके।
करमानी ने दिया कप्तान का पूरा साथ- कपिल देव और रोजर बिन्नी ने पारी को संभाला। छठे विकेट के लिए 60 रन की साझेदारी की लेकिन फिर 1 रन के भीतर ही 2 विकेट गिर गए। रोजर बिन्नी 22 रन बनाकर आउट हुए, तो वहीं रवि शास्त्री 1 रन बनाकर चलते बने। शास्त्री के आउट होने के बाद कप्तान का साथ देने मदनलाल क्रीज पर आए। लगातार विकेट गिरने की वजह से कपिल देव तेजी से बैटिंग कर रहे थे, उन्होंने मदनलाल के साथ आठवें विकेट के लिए 62 रन जोड़े, जिसमें मदनलाल का योगदान सिर्फ 17 रन का था। 140 के स्कोर पर मदनलाल का भी विकेट गिर गया, उसके बाद सैयद किरमानी कप्तान का साथ देने के लिए आए जिन्होंने कप्तान का भरपूर साथ निभाया और पूरा ओवर खेलकर वापस लौटे।
आखरी 11 ओवर में कपिल देव ने बनाए 75 रन – कपिल देव और किरमानी के बीच नौवें विकेट के लिए 126 रनों की अटूट साझेदारी हुई। इसमें किरमानी के बल्ले से 24 रन निकले थे लेकिन किरमानी कपिल देव का भरपूर साथ दिया और लगातार स्ट्राइक देते रहे। पारी समाप्त होने के बाद कपिल देव जब वापस आए तब उन्होंने 175 रन बना लिया था। वह भारत की तरफ से वनडे का सर्वोच्च स्कोर था। कपिल देव की शतक की मदद से भारत का स्कोर 266 रन हो गया था। कपिल ने 39 ओवर में अपना शतक पूरा किया और आखरी 11 ओवर में वे 75 रन बनाए।
बॉलिंग एकजुट होकर खेला भारत – गेंदबाजी में भारत ने एकजुट प्रयास किया। जिंबाब्वे की टीम की तरफ से केवल केविन करण ही टिक सके, जिन्होंने 73 रनों की पारी खेली। आपको एक और दिलचस्प बात बताते चलें, केविन करण के तीन बेटे टॉम, सैम और बेन करण भी क्रिकेटर बने। इनमें से टॉम और सैम करन इंग्लैंड की टीम में भी जगह बना चुके हैं। भारत की तरफ से मदनलाल सबसे ज्यादा 3 विकेट लिए, तो वहीं रोजर बिन्नी ने दो ओर वही कपिल देव, बलविंदर संधू और मोहिंदर अमरनाथ में एक-एक विकेट लिए। जिसकी वजह से जिंबाब्वे की टीम 57 ओवर में 235 रन पर सिमट गई और भारत एक 31 रनों से यह मैच अपने नाम कर लिया। इस मैच के 7 दिन बाद ही भारत ने वर्ल्ड कप भी जीत लिया था।